धन शोधन का गुजरात मॉडल — काले धन का खेल
अगर आप जानना चाहते हैं कि काले धन को सफेद कैसे किया जाता है, तो आपको गुजरात की दस अज्ञात पार्टियों को मिले चुनावी चंदे यानी चंदे का ब्यौरा जानना होगा।

5 वर्षों में अज्ञात राजनीतिक दलों को 4300 करोड़ का चंदा
43 उम्मीदवारों का कुल खर्च केवल 39 लाख रुपये, 54 हज़ार वोट
अहमदाबाद 27 अगस्त 2025 (हबीब शेख). अगर आप जानना चाहते हैं कि काले धन को सफेद कैसे किया जाता है, तो आपको गुजरात की दस अज्ञात पार्टियों को मिले चुनावी चंदे यानी चंदे का ब्यौरा जानना होगा। केरल से लेकर कश्मीर और पोरबंदर से लेकर त्रिपुरा तक के चंदादाताओं ने इन अज्ञात राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए भारी धनराशि दी थी। अजीब बात यह है कि इन पार्टियों के कार्यालय या तो किसी दुकान में हैं, या एक कमरे के फ्लैट में, या किसी चाली और गाँव में। एक पार्टी का कार्यालय एक पुरानी इमारत में था, जो चुनाव के बाद बंद हो गई।
इसका मतलब है कि काले धन को सफेद करने के लिए व्यापारियों या कर चोरों ने बड़ी रकम चंदे में दी होगी और कर के बाद की रकम नकद ली होगी।
ऑडिट रिपोर्ट से पता चला है कि कुल दस राजनीतिक दलों ने विधानसभा में 43 उम्मीदवार खड़े किए और उन पर 39 लाख रुपये खर्च किए। ये दस दल वे हैं जिनके नाम किसी ने भी नहीं सुने हैं, लेकिन उन्हें 4300 करोड़ रुपये का चंदा मिला, भास्कर दैनिक ने अपनी शोध रिपोर्ट में बताया।
इन दस दलों में लोकशाही सत्ता पक्ष, भारतीय राष्ट्रीय जनता दल, स्वतंत्र प्रकाश पार्टी, न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी, सत्यवादी रक्षक पार्टी, भारतीय जन परिषद, सौराष्ट्र जनता पक्ष, जनमन पार्टी, मानव अधिकार राष्ट्रीय पार्टी और गरीब कल्याण पार्टी शामिल हैं। इनमें से लोकशाही सत्ता पार्टी को 1046.55 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला, जिसने केवल चार उम्मीदवार खड़े किए और 3997 वोट पाने के लिए 1030.93 लाख रुपये खर्च किए। यह कितना आश्चर्यजनक है? इसी तरह, भारतीय राष्ट्रीय जनता दल को 961.97 करोड़ रुपये का चंदा मिला। उसके बाद, अज्ञात लोगों ने स्वतंत्र प्रकाश पार्टी को 663.47 करोड़ रुपये का चंदा दिया। इस पार्टी ने चुनाव में अपने केवल छह उम्मीदवारों पर 12.18 लाख रुपये खर्च किए। शेष राशि का कोई हिसाब नहीं रखा गया। यह स्पष्ट रूप से देखा जाता है कि दान केवल काले धन को सफेद करने के लिए दिया गया होगा। इस प्रकार, कुछ लोगों ने अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए ऐसी पार्टियाँ बनाईं या मौजूदा पार्टियों के साथ मिलकर काले धन को सफेद करने की साजिश रची।
न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी ने अपने चार उम्मीदवारों को जिताने के लिए चंदे में मिले 608.14 करोड़ रुपये में से 407.43 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, फिर भी इन चार उम्मीदवारों को केवल 9029 वोट मिले। हालाँकि, इस पार्टी ने चुनावों के लिए केवल 1.61 लाख रुपये खर्च किए थे और शेष धन का हिसाब भी नहीं दिया था।
इसी तरह, मानवाधिकार राष्ट्रीय पार्टी, जिसे कुल 120.40 करोड़ रुपये का चंदा मिला, ने केवल दो उम्मीदवारों पर 82 हजार रुपये खर्च किए थे। गरीब कल्याण पार्टी ने खर्च का ब्योरा भी नहीं दिया था।
कुछ पार्टियों ने तो लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा में भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। पिछले पाँच सालों में इन पार्टियों ने ऑडिट रिपोर्ट में 352.13 करोड़ रुपये का खर्च दिखाया था।
ये अज्ञात पार्टियां गुजरात में पंजीकृत हैं और इन्हें 2019-20 से 2023-2024 तक कुल 4300 करोड़ रुपये मिले। चुनाव आयोग के पंजीकरण के अनुसार, केरल से लेकर कश्मीर और पोरबंदर से लेकर त्रिपुरा तक के लोगों ने इन पार्टियों को चंदा दिया।
चुनाव आयोग को भेजी गई अपनी व्यय रिपोर्ट में इन पार्टियों ने कुल 39.02 लाख रुपये ही खर्च दिखाए।
इन पार्टियों ने जनकल्याण पर 802 करोड़ रुपये और मनोरंजन व हस्तशिल्प पर 58 करोड़ रुपये खर्च दिखाए। साथ ही, प्राप्त दान राशि में से 98 करोड़ रुपये कर्ज चुकाने के लिए दिए गए।
भारतीय राष्ट्रीय जनता दल को सबसे अधिक 17500000 रुपये मिले जो राजस्थान की हिसीमा फार्मा ने दिए। उसके बाद महाराष्ट्र के पेशवा आचार्य ने 74 लाख रुपये दिए। फिर गुजरात के जयेश पटेल ने 22 लाख रुपये दिए।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, इन पार्टियों ने मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी की है। उन्होंने चुनाव आयोग से इन पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी की पुष्टि करने का अनुरोध किया है।
लेखक अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।


